Kabir Ke Dohe By PMO

संत कबीर के दोहे हिंदी अर्थ सहित 

कबीर KABIR दोहा      कहैं कबीर देय तू, जब लग तेरी देह | देह खेह होय जायगी, कौन कहेगा देह ||
हिन्दी अर्थ   – जब तक यह देह है तब तक तू कुछ कुछ देता रह | जब देह धूल में मिल जायगी, तब कौन कहेगा किदो’|
KABIR दोहा      – देह खेह होय जायगी, कौन कहेगा देह | निश्चय कर उपकार ही, जीवन का फन येह ||
अर्थ    – मरने के पश्चात् तुमसे कौन देने को कहेगा ? अतः निश्चित पूर्वक परोपकार करो, यही जीवन का फल है |
KABIR दोहा      – या दुनिया दो रोज की, मत कर यासो हेत | गुरु चरनन चित लाइये, जो पुराण सुख हेत ||
अर्थ   – इस संसार का झमेला दो दिन का है अतः इससे मोह सम्बन्ध जोड़ो | सद्गुरु के चरणों में मन लगाओ, जो पूर्ण सुखज देने वाले हैं |
कबीर KABIR दोहा     – ऐसी बनी बोलिये, मन का आपा खोय | औरन को शीतल करै, आपौ शीतल होय ||
हिन्दी अर्थ  – मन के अहंकार को मिटाकर, ऐसे मीठे और नम्र वचन बोलो, जिससे दुसरे लोग सुखी हों और स्वयं भी सुखी हो |
KABIR दोहा      – गाँठी होय सो हाथ कर, हाथ होय सो देह | आगे हाट बानिया, लेना होय सो लेह ||
अर्थ   – जो गाँठ में बाँध रखा है, उसे हाथ में ला, और जो हाथ में हो उसे परोपकार में लगा | नर-शरीर के पश्चात् इतर खानियों में बाजार-व्यापारी कोई नहीं है, लेना हो सो यही ले-लो |
KABIR दोहा      –  धर्म किये धन ना घटे, नदी घट्ट नीर | अपनी आखों देखिले, यों कथि कहहिं कबीर ||
अर्थ    – धर्म (परोपकार, दान सेवा) करने से धन नहीं घटना, देखो नदी सदैव बहती रहती है, परन्तु उसका जल घटना नहीं | धर्म करके स्वयं देख लो |
KABIR दोहा     – कहते को कही जान दे, गुरु की सीख तू लेय | साकट जन औश्वान को, फेरि जवाब देय |
अर्थ   – उल्टी-पल्टी बात बकने वाले को बकते जाने दो, तू गुरु की ही शिक्षा धारण कर | साकट (दुष्टों)तथा कुत्तों को उलट कर उत्तर दो |
Kabir Dohe  – कबीर तहाँ जाइये, जहाँ जो कुल को हेत | साधुपनो जाने नहीं, नाम बाप को लेत ||
Hindi Meaning   –
गुरु कबीर साधुओं से कहते हैं कि वहाँ पर मत जाओ, जहाँ पर पूर्व के कुल-कुटुम्ब का सम्बन्ध हो | क्योंकि वे लोग आपकी साधुता के महत्व को नहीं जानेंगे, केवल शारीरिक पिता का नाम लेंगेअमुक का लड़का आया है’ ||
KABIR दोहा      – जैसा भोजन खाइये, तैसा ही मन होय | जैसा पानी पीजिये, तैसी बानी सोय ||
अर्थ   – ‘आहारशुध्दी:’ जैसे खाय अन्न, वैसे बने मन्न लोक प्रचलित कहावत है और मनुष्य जैसी संगत करके जैसे उपदेश पायेगा, वैसे ही स्वयं बात करेगाअतएव आहाविहार एवं संगत ठीक रखो |
KABIR दोहा      – कबीर तहाँ जाइये, जहाँ सिध्द को गाँव | स्वामी कहै बैठना, फिर-फिर  पूछै नाँव ||
अर्थ   – अपने को सर्वोपरि मानने वाले अभिमानी सिध्दों के स्थान  पर भी मत जाओ | क्योंकि स्वामीजी ठीक से बैठने तक की बात नहीं कहेंगे, बारम्बार नाम पूछते रहेंगे |
KABIR दोहा      – इष्ट मिले अरु मन मिले, मिले सकल रस रीति | कहैं कबीर तहँ जाइये, यह सन्तन की प्रीति ||
अर्थ   – उपास्य, उपासना-पध्दति, सम्पूर्ण रीति-रिवाज और मन जहाँ पर मिले, वहीँ पर जाना सन्तों को प्रियकर होना चाहिए |
KABIR दोहा      – कबीर संगी साधु का, दल आया भरपूर | इन्द्रिन को तब बाँधीया, या तन किया धर ||
अर्थ   – सन्तों के साधी विवेक-वैराग्य, दया, क्षमा, समता आदि का  दल जब परिपूर्ण रूप से ह्रदय में आया, तब सन्तों ने इद्रियों को रोककर शरीर की व्याधियों को धूल कर दिया | अर्थात् तन-मन को वश में कर लिया |
KABIR दोहा      – गारी मोटा ज्ञान, जो रंचक उर में जरै | कोटी सँवारे काम, बैरि उलटि पायन परे || कोटि सँवारे काम, बैरि उलटि पायन परै | गारी सो क्या हान, हिरदै जो यह ज्ञान धरै ||
अर्थ    – यदि अपने ह्रदय में थोड़ी भी सहन शक्ति हो, मिली हुई गली भारी ज्ञान है | सहन करने से करोड़ों काम (संसार में) सुधर जाते हैं, और शत्रु आकर पैरों में पड़ता हैयदि ज्ञान ह्रदय में जाय, तो मिली हुई गाली से अपनी क्या हानि है ?


KABIR दोहा       – गारी ही से उपजै, कलह कष्ट मीच | हारि चले सो सन्त है, लागि मरै सो नीच ||
अर्थ    – गाली से झगड़ा सन्ताप एवं मरने मारने तक की बात जाती है | इससे अपनी हार मानकर जो विरक्त हो चलता है, वह सन्त है, और (गाली गलौच एवं झगड़े में) जो व्यक्ति मरता है, वह नीच है |
KABIR दोहा       – बहते को मत बहन दो, कर गहि एचहु ठौर | कह्यो सुन्यो मानै नहीं, शब्द कहो दुइ और ||
अर्थ    – बहते हुए को मत बहने दो, हाथ पकड़ कर उसको मानवता की भूमिका पर निकाल लो | यदि वह कहा-सुना माने, तो भी निर्णय के दो वचन और सुना दो |
KABIR दोहा      – बन्दे तू कर बन्दगी, तो पावै दीदार | औसर मानुष जन्म का, बहुरि बारम्बार ||
अर्थ    – हे दास ! तू सद्गुरु की सेवा कर, तब स्वरूप-साक्षात्कार हो सकता है | इस मनुष्य जन्म का उत्तम अवसर फिर से बारम्बार मिलेगा |
KABIR दोहा      – बार-बार तोसों कहा, सुन रे मनुवा नीच | बनजारे का बैल ज्यों, पैडा माही मीच ||
अर्थ    – हे नीच मनुष्य ! सुन, मैं बारम्बार तेरे से कहता हूं, जैसे व्यापारी का बैल बीच मार्ग में ही मार जाता है, वैसे तू भी अचानक एक दिन मर जाएगा |
KABIR दोहा      – मन राजा नायक भया, टाँडा लादा जाय | है है है है है रही, पूँजी गयी बिलाय ||
अर्थ   – मन-राजा बड़ा भारी व्यापारी बना और विषयों का टांडा (बहुत सौदा) जाकर लाद लिया | भोगों-एश्वर्यों में लाभ है-लोग कह रहे हैं, परन्तु इसमें पड़कर मानवता की पूँजी भी विनष्ट हो जाती है |
KABIR दोहा    – बनिजारे के बैल ज्यों, भरमि फिर्यो चहुँदेशखाँड़ लादी भुस खात है, बिन सतगुरु उपदेश |
अर्थ – सौदागरों के बैल जैसे पीठ पर शक्कर लाद कर भी भूसा खाते हुए चारों और फेरि करते हैइस प्रकार इस प्रकार यथार्थ सद्गुरु के उपदेश बिना ज्ञान कहते हुए भी विषयप्रपंचो में उलझे हुए मनुष्य नष्ट होते है |
KABIR दोहा    – जीवत कोय समुझै नहीं, मुवा कह संदेश | तनमन से परिचय नहीं, ताको क्या उपदेश |
अर्थ शरीर रहते हुए तो कोई यथार्थ ज्ञान की बात समझता नहीं, और मार जाने पर इन्हे कौन उपदेश करने जायगा | जिसे अपने तन मन की की ही सुधिबूधी नहीं हैं, उसको क्या उपदेश किया?
KABIR दोहा    – जिही जिवरी से जाग बँधा, तु जनी बँधे कबीर | जासी आटा लौन ज्यों, सों समान शरीर |
अर्थ जिस भ्रम तथा मोह की रस्सी से जगत के जीव बंधे है | हे कल्याण इच्छुक ! तू उसमें मत बंध | नमक के बिना जैसे आटा फीका हो जाता है, वैसे सोने के समान तुम्हारा उत्तम नरशरीर भजन बिना व्यर्थ जा रहा हैं |


Comments